Hindi Extended Essay - time travel

Authors Avatar by avinash166 (student)

Avinash                                                                                                                                                              dqb266

International Baccalaureate

Sharad Pawar International School Pune, India.

Extended Essay in Hindi (विस्तृत निबंध)

Topic (विषय) - काल यात्रा

शैक्षणिक सत्र – मई २०१२

विधार्थी का नाम – अविनाश सुमन

विधार्थी का क्रमांक – DQB266

शक्षणिक संख्या – 002885045 (००२८८५०४५)

काल यात्रा.

समय में आगे या पीछे जाने कि संकल्पना को काल यात्रा कहते है और मै इसके बारे में इसलिया लिख रहा हू ताकि में जनों को इसके होने के सम्भावना से वाखिफ कर सकू क्यों कि यह एक ऐसा विधान है जिसके बारे मे आम लोगो के पास बहुत ही काम जानकारी है.वैसे तो एक ज़माने में काल यात्रा वैज्ञानिको की सनक मानी जाती थी लेकिन अगर मेरे पास एक टाइम मशीन होता तो में आदि मानव से मिलने जाता या उस दौर में जाता जब दुनिया बनी थी. तब शायद मै ब्रहमांड के एक छोर पर जा कर यह भी देख सकू की हमारी सम्पूर्ण अंतरिक्ष की कथा का अंत कैसे होगा. लेकिन हमें इसके होने के संभावना को देखने के लिए एक भौतिक वैज्ञानिक के नजरिये से देखना होगा. यह काम उतना भी मुश्किल भी नहीं है जितना लगता है. हर वास्तु  भले ही मेरे यह कुर्सी ही क्यों ना हो. हर चीज़ की चौड़ाई,लम्बाई और ऊचाई भी होती है. लेकिन इसके इलावा एक लम्बाई और भी होती है ‘काल की लम्बाई’ और काल यात्रा का मतलब यह है की उस चौथे आयाम के पास जाना.

इसे समझने के लिए हम एक कार का उदाहरण ले सकते है अगर हम एक कार को सीधे रास्ते में तेज रफ़्तार से चलाए तो हम एक आयाम में सफर कर रहे होंगे. दाए या बाए मुड़ने पर एक आयाम और जुड़ जाता है लेकिन हम जब पहाड़ी सडको पर उपर नीचे जाते है तो ऊचाई भी जुड़ जाती है और हमें हमारा तीसरा आयाम मिल जाता है.लेकिन पृथ्वी पर हम काल यात्रा कैसे कर सकते है. हम उस चौथे आयाम में जाने का रास्ता कैसे ढूढेगे.

टाइम ट्रेवल वाले फिल्मो में अकसर एक विशाल मशीन होती है जो ऊर्जा पीती है और यह मशीन चौथे आयाम में एक रास्ता बना देती है जिससे हम काल में एक सुरंग की मदद से काल यात्रा कर सकते  हैं . यह राय दूर की कौड़ी भले ही लगे लेकिन सच शायद इससे अलग हो पर ऐसा कर पाना नामुमकिन नहीं है. भौतिक विज्ञानिक काल में सुरंग बनाने की सो़च रहे थे लेकिन हम काल यात्रा के बारे में एक अलग नज़रिए से सो़च रहे है. हम यह जानना चाहते है की क्या हम आपने अतीत या भविष्य में जाने के लिय कुदरत के नियमों के आधार पर एक रास्ता बना सकते है और तलाश करने पे पता लगा कि वो पहले से ही मोजूद है इतना ही नहीं हमने तो उन्हें एक नाम भी दे रखा है ‘वोर्म होल’. सच तो यह है की चारो ओर वोर्म होल है लेकिन वो इतने छोटे है की वो सामने नज़र नहीं आते. वो काल और अंतराल के चप्पे चप्पे पर मोजूद है. आपको यह बात शायद अटपटी लग रही होगी लेकिन कोई भी चीज़ न तो समतल है ना हीं ठोस. अगर आप ध्यान से देखे तो आपको हर चीज़ में दरार,सुराख़ या झुर्रिय नज़र आयगी यह भौतिकी का एक आम सिद्धांत है जो काल पर भी लागू होता है जैसे एक पूल टेबल की सतह पूरी समतल और सपाट लगती है लेकिन अगर हम ध्यान से देखे तो हमको सच का अंदाज़ा हो जायेगा की इनमे अनगिनत सुराख़ और दरारे है. यहाँ तक की सबसे चिकने चीज़ में भी दरारे और झुरिया है. पहले तीन आयामों में तो मेने आपको यह बड़ी आसानी से समझा दिया लेकिन यकीन किज़ए चौथी आयाम में भी यह बात बिलकुल सही है. काल में भी छोटी छोटी दरारे और गड्ढे है. अगर हम बहुत छोटे पयमाने पर बात करे मेरा मतलब अनु और परमाणु से भी छोटे पेमाने पर तो हमें वहा वो मिलेगा जिसे हम कहते है ‘कुआन्टम फोर्सऔर यही वह जगह है जहा वोर्म होल होते है और वो काल और अंतराल के बीच आने जाने के छोटे छोटे रास्ते बनते और बंद करते रहते है. वह इस कुआन्टूम जगत में मौजूद रहते है. असल में यह दो अलग अलग जगहो को और दो अलग अलग काल को जोड़ते है.

लेकिन अफसोस की बात यह है की यह वास्तविक सुरंगे एक सेंटीमीटर के एक अरब खरबे हिस्से जितनी चौड़ी होती है और इससे से कोई भी नहीं गुजर सकता लेकिन यह वोर्म होल एक टाइम मशीन का एक आधार बन सकता है. कुछ वैज्ञानिक मानते है की इनमे से ही एक को खरब गुणे बड़ा बना दिया जाये की इससे कोई इंसान या अंतरिक्ष यान जा सके. अगर हमारे पास ऐसी टेक्नोलोजी हो और हमें ज़रूरत भर कि उर्जा मिल जाये तो शायद हम अंतरिक्ष के एक विशाल वोर्म होल को बड़ा कर एक ही जगह पर रखे और उनके बीच फासला अंतराल के बजाय काल का हो तो उससे हो कर हमारा यान पृथ्वी के करीब ही आयगा जायेगा लेकिन उसका सफर हमारे अतीत में ही होगा. हो सकता है की हमारा यान डायांनासोर की जमाने में पहुच जाए ठीक उनके सामने. लेकिन मुझे लगता है चारो आयामों को सो़च पाना मुश्किल है और वोर्म होल इतनी आसान चीज़ भी नहीं है की हम अपना सर खपा सके.

Join now!

 लेकिन यह प्रयोग असफल इसलिये रहा क्योंकि इसकी वजह एक ही है जिसे हम विरोधावास कहते है.विरोधावास विरोधावशकी समस्या यह है की

जरा सोचिये किसी ने कल सुरंग एक वोर्म होल बना लिया है और वोह सिर्फ एक मिनट पीछे जा सकता है. वैसे तो एक मिनट की काल यात्रा ज्यादा नहीं लगता लेकिन यह एक मिनट की काल यात्रा बड़ी मुसीबत बन सकती है.उस वार्म होल से वह देख सकता है की मिनट भर पहले कैसा था. लेकिन अगर वह मिनट भर पहले वाले कि हत्या कर दे तो? इसी को विरोधावास कहते है इसका कोई मतलब नहीं होता. इसकी वजह से अंतरिक्ष  दुविधा में रहते है इस तरह से वोह बुनयादी नियुम ही टूट जायेगा जिससे पूरा ब्रम्हांड चल रहा है इस से हम किसी काम का अंजाम तो देख सकते है लेकिन उसे बदल नहीं सकते. मुझे नहीं लगता की कोई चीज़ खुद को नामुमकिन बना सकती है अगर वो ऐसा कर पाती तो पुरे ब्रह्माण्ड में अफरा तफरी के माहोल में जाने से कोई नहीं रोक पाता. इसलिये कुछ  कुछ ऐसा हमेशा होता है की जो विरोधावास को रोकता लेकिन इस मामले में समस्या की जड़ तो वोर्म होल ही था. में तो इस नातिजे पे पंहुचा हू इस तरह के वोर्म होल का वजूद ही नहीं हो सकता ओर इसकी वजह फीड बेक है.

अगर आप किसी संगीत समारोह में गए होंगे तो एक हाई पिच धवनी को जानते ही होगे यही है फीड बेक इसकी वजह बड़ी मामूली सी है आवाज माइक्रोफोन में जाती है वो तारो से होती हुइ और एम्पलीफायर से तेज होकर स्पीकर के जरये बाहार आती है लेकिन अगर स्पीकर से आवाज़ मायक में बार बार वापस जाये तो इसका एक लूप बन जाता है और आवाज़ लगातार तेज हो जायेगी अगर इसे रोका नहीं गया तो तो फीड बेक सारे स्पीकर को नष्ट कर देगी.और वार्म होल के साथ भी यही होता है.लेकिन उसमे आवाज़ की जगह  radiation होता है. जैसे ही वार्म होल बड़ा होता है कुदरती  radiation उसके अंदर जाता है और उसका भी एक लूप बन जाता है अतः इसका फीड बेक इतना दमदार होता है की उससे पूरा वार्म होल ही नष्ट हो जाता है.इसलिए हम इस वजह से इसको टाइम मशीन की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकते और इसी वजह से अतीत में कल यात्रा कर पाना नामुमकिन है .ऐसा करने पर विरोधावास होगा ही होगा मगर कहानी यंही नहीं खतम होती.ऐसा नहीं है कि हम किसी तरह की काल यात्रा कर ही नहीं पाएंगे.

समय किसी नदी की तरह आगे बढ़ता है और ऐसा लगता है की हम सब समय के धारा के साथ बहे चले जा रहे है लेकिन समय एक दूसरे तरीके से भी नदी जैसा है वो भी अलग अलग जगह पर अलग अलग रफ़्तार से बहता है और यही भविष्य की सेर की कुंजी है ये विचार दिया था अल्बर्ट आइन्स्टीन ने सौ साल से जायदा पहले उन्हें अंजादा था कुछ जगहों पर वक्त की रफ़्तार कम हो जाती है और कुछ जगहों पर तेज उनकी बात बिलकुल सही थी इसका साबुत है हमाँरे ठीक ऊपर अंतरिक्ष में ये है GPS ३१ उपग्रहों को वो नेटवर्क जो पृथ्वी के चारो और चक्कर  लगते है उपग्रह ही उपग्रहों को रास्ता दिखाते है लेकिन उसे ये भी पता लगता है की अंतरिक्ष में वक्त की रफ़्तार पृथ्वी से तेज है हर यान के अंदर एक बेहंद सटीक घडी लगी है लेकिन इतनी सटीक होने के बाद भी रोज एक सेकंड के एक अरबे हिस्से जितनी तेज हो जाती है वो इतना बड़े नहीं इसलिए उसे रोज ठीक करना पड़ता है अगर ऐसा नहीं किया जाये तो इस मामूली से बदलाव से ही पूरा सिस्टम बिगड जायेगा उससे पृथ्वी पर मौजूद हर यंत्र में रोजाना करीब दस  किल्लोमीटर का फर्क  जायेगा आप अंदाजा लगा सकते है की इसससे कितना फर्क पड सकता है, कितना हंगामा हो सकता है समस्या उन घडियों में नहीं है यंह पर तो नीचे पृथ्वी के मुकाबले वक्त ही ज्यादा तेज़ी से चलता है  इस अनोखे फर्क की असली वजह है हमारी पृथ्वी का भार. आइंस्टीन को अंदाज़ा था किसी पिंड का असर वक्त पर पड़ता है और वो नदी के धीमे बवाह वाले हिस्से की तरह वक्त की रफ़्तार को कम करता है वो पिंड जितना भरी होगा वक्त पर खिचाव भी उतना ही जायदा होगा. ये अनोखा सच है जिसके साहारे हम भविष्य की काल यात्रा कर सकते है मानता  हू कि इस बात को समझना इतना आसान भी नहीं है इसलिए आपको  एक आसान से उदारहंन से समझता हू .ये है गीज़ा का मशहूर पिरामिड इसका वज़न चार करोड़ से भी ज्यादा है हर भारी पिंड की तरह ये भी वक्त की रफ़्तार को कम कर रहा है यंह ये असर बहुत कम है पृथ्वी के मुकाबले एक अरबे हिस्सा जितना कम लेकिन अगर हम इसे काफी  बढ़ा दे तो बात आपके समझ में  जायेगी लगेगा की यंह भी वही हो रहा है पिरामिड के पास हर चीज की रफ़्तार कम हो जाती है वैसे ही जैसे कई जगहों पर नदी का बहाव कम हो जाता है यंहा पर वक्त ही दूसरी जगहों के मुकाबले कही धीरे चलता है लेकिन अगर पिरामिड के पास खड़े लोग दूर से देखे तो? उन्हें बिलकुल उल्टा असर नज़र आएगा क्यूँ की उनकी रफ़्तार कम होती है इसलिए उन्हें दुरी पर हर चीज़ तेज़ी से चलती नज़र आएगी ये असर है पिरामिड के भर का यही बदलाव हमारे लिए काल यात्र के दरवाज़े खोलता है अगर हमें कल यात्रा करनी है तो हमें वो चीज़ चाहिए जो पिरामिड से कही ज्यादा भरी हो और में जानता हो की वो चीज़ क्या है. हामारी आकाशगंगा के केन्द्र में हमसे करीब छब्बीस हज़ार प्रकाश वर्ष दूर मौजूद है हमारे पुरे तारामंडल की सबसे बड़ी चीज़ वो ढकी है गैस के बादलों ओर तारो से वो एक बहुत ही बड़ा ब्लैक होल है जिसका भार करीब चालीस लाख सुरजो के बराबर है और लगता है की वो अपने ही गुरूत्वाकर्षण बल के दवाब से इसके अंदर दब गए है हम उस ब्लैक होल के जितने  करीब जायेगे गुरुत्वाकर्षण बल भी उतना ही ज्यादा होगा उसके ज्यादा करीब जाने पर तो प्रकाश भी उसके चगुंल में आने से नहीं बच सकता वो स्याह अंधरे में ढका करीब ढाई करोर किल्लोमीटर ब्यास का गोला है इस तरह के ब्लैक होल का समय का बड़ा गहरा असर पड़ता है यह उसे इतना कम कर देता है की ब्रह्मांड कि कियो और चीज़ उसे उतना कम नहीं कर सकती इसलिए वह एक कुदरती  टाइम मशीन बन जाता है में तो ये सोच रहा हू की अगर किसी दिन कोई अंतरीक्ष यान उसका फायदा उठने में कामयाब हो गया  तो क्या होगा ?सबसे पहले तो उसे अंदर खिचे जाने से बचना होगा इसके लिए उन्हें इसके किनारे से गुजरना होगा ताकि वह  उन्हें  खीच ना पाए उन्हें सही दिशा ओर रफ़्तार बनाये रखनी होगी वरना वह बच नहीं पायेगी अगर सब ठीक ठाक रहा तो वो यान उसके  करीब पांच करोड़ किल्लोमीटर लंबे व्यास की परिकर्मा करने लगेगा वंहा वो बिलकुल सुरक्षति होगा उसकी रफ़्तार इतनी होगी की वो और नहीं गिर पायेगा उस अभियान पर अगर कोई स्पस एजेन्सी पृथ्वी या उस ब्लैक होल से काफी दूर से नियंत्रण रख रही होगी तो उसे लगेगा की  उसका यान सोलह मिनट में एक चक्कर लगा रहा है लेकिन यान में बैठे बहादुर  लोग उस विशाल पिंड के बेहद करीब होंगे और उनके लिए वक्त की रफ़्तार काफी कम होगी वंहा पर इसका असर भी पिरामिड या पृथवी के पास होने के मुकाबले कही अलग होगा यान कर्मी दल के लिए वक्त करीब आधा हो जायेगाअपनी सोलह मिनट की परिक्रमा के लिए उन्हें सिर्फ आठ मिनट ही महसूस होंगे वो उसकी परिक्रमा करते रहेगे और उस ब्लैक होल से दूर बैठे लोगो  के मुकाबले आधा वक्त ही महसूस करते रहेगे. यान ओर उसका कर्मी दल समय की सेर कर रहा होगा काल यात्रा मान लीजये की कर्मीदल ने अपने यान में पांच साल तक  उस ब्लैक होल का चक्कर लगाया तब तक दुनिया दस साल आगे निकल जायेगा जब वो पृथ्वी पर वापस आयेगे तब तक उनके मुकाबले बाकि लोगो की उम्र जायदा होगी यान का कर्मीदल भविष्य की पृथवी पर वापस आएगा उसने ना ही अंतरीक्ष की सेर की होगी बल्कि समय की सेर भी की होगी. मतलब की बहुत ही बड़ा ब्लैक होल किसी टाइम मशीन से कम नहीं होता लेकिन जाहिर है की ये व्यव्हारिक नहीं है. हा वार्म होल से थोडा अलग जरूर है किउकी इसमें विरोधावास नहीं होता.साथ ही फीड बेक से खुद को नष्ट भी नहीं करता लेकिन ये बड़ा ही खतरनाक है ये हमसे काफी दूर है और ये भविष्य में ज्यादा दूर भी नहीं ले जा सकता.गनीमत है की हमारे पास काल यात्रा का एक और साधन भी है उसकी मदद से हम एक असली टाइम मशीन भी बना सकते है क्युकि वो हमारी आखरी लेकिन बेहतरीन उम्मीद है.ऐसा कैसे होगा हमें समझने के लिए हम विज्ञान कथा  फिल्मो की परिवहन सेवा की कल्पना करते है मान लीजये की हमरे पृथ्वी के चारो ओर पटरी बिछी है. उस पटरी पर चलती है सुपर फास्ट ट्रेन.हम इस कल्पिनिक ट्रेन को ही  प्रकाश के रफ़्तार के ज्यादा ज्यादा से ज्यादा करीब ले जाकर देखेगे की वो किस तरह से टाइम मशीन बन सकती है.इसमें सवार है भविष्य की एक तरफ़ा सेर पर जाने वाले सेलानी. जैसे ट्रेन की रफ़्तार तेज होती जायेगी. जल्दी ही वो पृथ्वी की परिकर्मा करने लगती है.प्रकाश की रफ़्तार तक पहुँचने के लिए उसे बहुत तेज़ी से पृथ्वी का चक्कर लगाना पड़ेगा एक सेकंड में सात बार. लेकिन हम लाख कोशिश क्यों ना कर ले ट्रेन कभी प्रकाश की रफ़्तार से नहीं चल पायेगी क्युकि भोतिकी की नियम है.हा इतना जरूर है वो उसकी रफ़्तार के आस पास पहुच सकती है.लेकिन तभी होगी एक आसधारण बात उस  ट्रेन के अंदर बाहर के मुकाबले वक्त काफी धीरे चलेगा.वैसे ही जैसे ब्लैक होल के पास चलता है शायद उससे भी धीरे. ट्रेन में सब कुछ धीमी रफ़्तार में होने लगेगा.ऐसा रफ़्तार की सीमा को बच्चन के लिए होता है और आप भी इसकी वजह समझ सकते है.आप ही कल्पना कीजये की एक बच्ची ट्रेन में ट्रेन की दिशा में दोड़ती है अगर हम उसके दोड़ने की रफ़्तार को ट्रेन की रफ़्तार से जोड़ दे तो उसकी रफ़्तार ज्याद तेज हो जायेगी ना? तो क्या वो गलती से ही सही रफ़्तार की सीमा पार  नहीं कर जायेगी.नहीं वी नहीं कर पायेगी .कुदरत का नियम ट्रेन मे वक्त की रफ़्तार कम करके उसे ऐसा नहीं करने देगा वो इतनी तेज़ी से दौड ही नहीं सकती की वो सीमा  को पार  कर ले. वक्त हमेशा रफ़्तार की सीमा को बचाये रखने के लिए अपनी रफ़्तार कम कर लेता है. इसी तथ्य के आधार पर हम भविष्य में ज्यादा लंबी दूरी तक सफर कर पायेगे आप ये सोचए की ये ट्रेन एक स्टेशन से एक जनवरी २०५० को चलती है वो अगले सो साल तक लगातार पृथ्वी की परिकर्मा करती रहती है फिर एक जनवरी २१५० को वो रुक जाती है लेकिन उसमे बैठे मुसाफिरों के लिए तो सिर्फ हप्पते भर का वक्त बीता है क्योंकि ट्रेन के अंदर समय की रफ़्तार इतनी कम हो गयी थी जब वो ट्रेन से बहार आते है तो उनके सामने वो दुनिया नहीं होती जो वो छोड़ कर गए थे सिर्फ एक हप्पते में उन्होंने भविष्य में सौ साल का सफर कर लिया है.बेशक उस रफ़्तार से चलने वाली ट्रेन बना पाना तो नामुमकिन है लेकिन हमने उस ट्रेन जैसे ही एक  चीज़ स्विसजरलैंड में जेनेवा के C.E.R.N  में बना ली है.एक परिटिकल एक्सेलेरेटर जो दुनिया में सबसे बड़ा है जमीन में काफी गहराइ में गोलाकार सुरंग बननी है जो करीब  छबीस किल्लोमीटर लंबी है जिसे खरबो छोटे छोटे कण बनते है जैसे ही इसे चलाया जाता है उनकी रफ़्तार पलक झपकने से कम वक्त में सुन्य से एक करोड़ किल्लोमीटर प्रति घंटा तक पहुँच जाती है.अगर सकती बढ़ा  दी जाये तो उनकी रफ़्तार भी बढती जायेगी फिर एक वक्त आएगा जब वो जब वो सुरंग में एक सेकंड में अग्यरा हज़ार बार चक्कर लगाने लगेगे.यानी प्रकाश की रफ़्तार के बराबर की रफ़्तार पर लेकिन ट्रेन की तरह वो उस रफ़्तार की सीमा तक नहीं पहुँच वो उस सीमा 99.9% तक ही पहुँच पायेगी लेकिन ऐसा होने पर वो भी काल यात्रा करने लगेगे. इसकी वज़ह ये है की वो कण है piemeshan जिनकी उम्र बहुत कम होती है. आम तोर पर वो सेकंड के पच्चीसव अरबवे हिस्से में ही टूट जाते है लेकिन जब उन्हें करीब करीब प्रकाश की गति से चलाया जाता है तो उनकी उम्र करीब 30% बढ़ जाती है ये कण असली काल यात्री है यह बात इतनी मामूली है अगर हम भविष्य की सेर पर जाना कहते है तो हमें ज्यादा से ज्यादा तेज जाना होगा बहुत तेज और मुझे लगता है ऐसा करने के लिए अंतरिक्ष में जाना होगा.

इंशान का बनाया आज तक का सबसे तेज वाहन है अपोलो १० उसकी रफ़्तार चालीस हज़ार किल्लोमीटर प्रति घंटा. लेकिन काल यात्रा के लिए हमें रफ़्तार दो हजार गुना ज्यादा चाहिए.इसके लिए हमें बनाना होगा एक कही बड़ा यान जो एक बहुत बड़ी मशीन हो.वो यान इतना बड़ा होना चाहिए की उसमे इतना इंधन रखा जा सके की वह प्रकाश की गति से चल सके.उस खगोलीय गति सीमा तक पहुँचने के लिए ही उसे पुरे शक्ति से  साल तक चलना पड़ेगा. सुरु में तो इसे धीरे धीरे ही ले जाना होगा क्युकि यान काफी बड़ा ओर भरी होगा लेकिन जल्दी ही उसकी रफ़्तार बढ़ जायेगी ओर वो लंबी दूरी तक जाने लगेगा.सिर्फ हप्पते भर में गैस के गोले नेप्टुन जैसे ग्रह तक पहुँच  जायेगी. दो साल बाद वह प्रकाश की रफ़्तार की आधी रफ़्तार पा लेगा ओर हमारे  सौर्यमंडल में काफी दूर तक पहुँच जायेगा. अगले दो साल बाद वो उस गति सीमा कि ९०% गति पा लेगा फिर वो हमारे  सबसे करीबी तारा मंडल अल्फा सेंचुरी को पार कर लेगा पृथ्वी से करीब पच्चास खरब किल्लोमीटर दूर जाने के बाद और अपने लॉन्च के चार साल बाद वो प्रकाश कि गति से उड़ने लगेगा. उस यान हर घंटा पृथ्वी के दो घंटे के बराबर होगा उसकी हालत भी उस विशाल ब्लैक होल कि परिकर्मा करने वाली यान जैसे ही होगी.और कहानी यंही खत्म नहीं होती. पूरी रफ़्तार से उड़ता हुआ वो यान अगले दो साल बाद प्रकाश कि रफ़्तार के निन्नाबे प्रतिशत के बराबर कि रफ़्तार से उड़ने लगेगा.उस रफ़्तार पर यान में एक दिन पृथ्वी के एक साल के बराबर होगा तब हमारा वो यान भविष्य में उड़ान भरेगा.

वक्त कि रफ़्तार कम होने का एक फायदा भी है इसका मतलब है कि कम से कम सिद्धांतिक रूप में तो हम अपने जीवन काल में ही अशधारन दूरी तय कर सकते है ब्रहमांड कि छोर तक पहुचने में हमें सिर्फ अस्सी साल लगेगे. लेकिन हमारे इस सफर का सबसे बड़ा रोमांच तो ये होंगा हम देख पायेगे हमरा ब्रह्माण्ड कितना अनोखा है .हमारे ब्रह्माण्ड में अलग अलग जगह पर वक्त कि रफ़्तार अलग अलग होती है.

.

This is a preview of the whole essay